जमुई, किसान के 500 से ज्यादा संगठनों की तरफ से ने नये कृषि कानून को वापस लेने,’आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन को रद्द करने और बिजली बिल माफ करने की मांग को लेकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति के आह्वान पर जमुई जिले के कचहरी चौक पर किसानों के आंदोलन के समर्थन में धरना प्रदर्शन किया गया. धरना की अध्यक्षता आइसा प्रदेश उपाध्यक्ष बाबू साहब ने किया अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 18 दिनो से दिल्ली के बॉर्डर पर लाखों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. इन किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए भाजपा सरकार द्वारा लाठीचार्ज,आशु गैस, वाटर कैनन से हमला किया गया और सड़कों पर सीमेंटेड बैरिकेड खड़ा कर गहरी खाई तक खोद दी गयी. मानो किसानों के खिलाफ अपने देश की सरकार युद्ध कर रही हो.
केन्द्र की मोदी सरकार ने कृषि अध्यादेशों को लोकसभा व राज्यसभा में कानून में बदल दिया है.ये कानून आजादी के बाद देश की खेती व गरीबों की खाद्य सुरक्षा पर सबसे भीषण हमला है.
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धरने को सम्बोधित करते हुऐ शंभू शरण सिंह ने कहा की नए कानून कंपनियों को फसल खरीद की सीधी छूट देता है.कम्पनियां में धन्ना सेठ अपने धनबल के दम पर उपज खरीदी पर अपना एकाधिकार जमा लेंगे. सीपीआई के जिला सचिव नवल किशोर सिंह ने धरने को सम्बोधित करते हुऐ कहा कि ये कानून पूरे देश में ठेका खेती लाने के लिए कंपनियों को छूट देता है. राज्य सरकारें भी इस पर रोक नहीं लगा सकती.इससे अघोषित रूप से ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ का खात्मा हो जाएगा और किसान मंडियों पर बड़ी कंपनियों का कब्जा हो जाएगा और बड़ी कंपनियों को अधिकतम मुनाफा कमाने की गारंटी होगी.
राजद के प्रदेश महासचिव डॉ त्रिवेणी यादव ने संबोधित करते हुए कहा कि किसान और मजदूर कंपनियों के गुलाम हो कर रह जाएंगे.
आज ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन कर कोटा से ज्यादा स्टॉक रखने पर पाबंदी हटा देने के कारण आलू,प्याज और खाद्य तेल की कीमत आसमान छू रही है. देश के लगभग 80 प्रतिशत सीमांत किसान जो अपने खेत पर मजदूरी भी करते हैं और खेतिहर मजदूरों का बड़ा हिस्सा बटाईदारी प्रथा के तहत खेती करता है, इस कानून से बुरी तरह से प्रभावित होगा और ये कानून गरीबों को कुपोषण और भुखमरी की ओर ढकेल देगा.मौके पर उपस्थित भाकपा माले के नेता बासुदेब रॉय कहा कि नीतीश सरकार द्वारा किसानों के खरीद की अधिकतम सीमा में बढ़ोतरी छलावा के अलावा कुछ नहीं है. आखिर सरकार धान खरीद में सीमा का निर्धारण क्यों कर रही है? देशव्यापी किसान आंदोलनों के दबाव में सरकार झुकी तो है लेकिन धान खरीद की सीमा निर्धारण और रजिस्ट्रेशन का नियम लाकर वह मामले को लटकाना चाहती है.बिहार सरकार ने 2006 में ही मंडियों की व्यवस्था खत्म कर, जिसे अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है, बिहार के किसानों को बर्बादी के रास्ते पर धकेलने का काम किया है। बिहार में धान व अन्य फसलों की खरीद की व्यवस्था की स्थिति सबसे खराब है.
हमारी मांग है कि बिना किसी भेदभाव और बिना रजिस्ट्रेशन के सरकार बटाईदार किसानों सहित सभी किसानों का, जो अपना धान बेचना चाहते हैं, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी खरीद की गारंटी करे। यह बेहद चिंताजनक है कि लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की मांग हो रही है, लेकिन सरकार इसपर तनिक भी गंभीर नहीं है। जिले के 153 पंचायत है लेकिन मात्र 36 पैक्स द्वारा ही धान की खरीदारी की जा रही उसमें भी बड़े पैमाने पर धांधली हो रही है.
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कांग्रेस जिला अध्यक्ष हरेंद्र सिंह एवम वरिष्ठ अधिवक्ता दयानंद सिंह ने भी किसानों के समर्थन में सभा को संबोधित किया. मौके पर सीपीआई के जिला प्रभारी मंत्री गजाधर रजक, सुभाष सिंह,प्रबीन पाण्डे, प्रयाग यादव,राजकुमार यादव, उमाकांत मिश्रा, शलामुल, मुरारी राम, लखन यादव, धर्मेंद्र मुखिया, सूर्य मोहन, आमोद चंद्रवंशी, रामदेव यादव, नितेश्वर आजाद, गोपाल गुप्ता, मुन्ना दास,सरदार मोदी,चंचल तांती, कारू तुरी, मुरारी तुरी, कैलाश सिंह सहित सैकड़ो लोग उपस्थित थे.
मुकेश कुमार पासवान की रिपोर्ट
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