गिधौर की दुर्गा-पूजा बहुत प्रसिद्ध है। नवरात्रि में दुर्गा मंदिर में हजारों लोग आते हैं। आसपास के क्षेत्रों में गिद्धौर दुर्गा मंदिर को लेकर भक्तजनों में काफी आस्था का केंद्र रहा है. पूरे जिले एवं बिहार में दुर्गा स्थान अपनी महिमा के लिए प्रचलित है. गिद्धौर दुर्गा मंदिर को पतसंडा दुर्गा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. यहां के दुर्गा मंदिर के लिए एक कहावत प्रचलित है की काली है कलकत्ते की दुर्गा है पतसंडे की.
पतसंडा के इतिहास की अगर बात करें तो चंदेल वंश के राजाओं ने छह शताब्दियों से अधिक समय तक पत्संदा पर शासन किया। राजा बीर विक्रम सिंह ने 1266 में इस रियासत की स्थापना की। जो सिंगरौली के बाड़ी के राजा के छोटे भाई थे। कहा जाता है कि चंदेल वंश के राजाओं का भी मंदिर के प्रति गहरी आस्था थी. राजघराना द्वारा मंदिर के पूजा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जाता रहा है. मां दुर्गा के सिर पर सुशोभित लगभग ढाई किलो के सोने का मुकुट भी राजघराना द्वारा माता को अर्पित गया था. जो आज भी शारदीय नवरात्र के दौरान माता के सर पर सुशोभित रहता है.
गिद्धौर में स्थित मां दुर्गा का मंदिर दो नदियों के संगम तट पर बसा हुआ है. लगभग 400 साल से अधिक समय से श्रद्धालुओं द्वारा नदी में स्नान कर दंडवत लगाने का परंपरा चला आ रहा है. पूरे जमुई जिला के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए नदी में स्नान कर माता के दरबार में दंडवत लगाते हैं. माता भी अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाती हैं.
कुमार नेहरू की रिपोर्ट