सिमुलतला, लॉकडाउन में गरीब तबके से मध्यम वर्ग के परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी के लिये एक तरफ जहां रोजगार के सारे दरवाजे बन्द हो गया है,वहीं दूसरी और सरकार के द्वारा दिया जा रहा मुफ्त का राशन के लिये जरूरतमंदों को राशन कार्ड भी नहीं निर्गत हो पाया है. सरकार की व्यवस्था कहें या विभागीय मुलाजिमों की लापरवाही, पिछले कोरोना काल में ही जीविका दीदियों के द्वारा हर घर से राशन कार्ड बनाने के लिये दस्तावेज इकट्ठा किया गया जो विभागीय कार्यालय में ही दम तोड़ दिया. दुबारा पुनः सरकारी फरमान जारी हुआ और जरूरतमंद लोगों ने आयप्रमाण पत्र आवासीय प्रमाण पत्र फ़ोटो ऑन लाइन करवाने के बाद प्रखण्ड कार्यालय में बड़ी मसक्त के बाद जमा किया. लेकिन इसके वाबजूद भी जरूरत मन्दों को राशन कार्ड तक मुहैया नहीं हो सका.
इस भीषण कोरोना महामारी के इस वैश्विक आपदा में भी वैसे जरूरत मन्द जिन्हें राशन कार्ड निर्गत नहीं है और आधार नम्बर पर भी तकनीकी कारण से राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. ऐसी स्थिति में एक बार फिर से क्षेत्र के गरीब, असहाय एवं मजदूर परिवार दाने दाने के मोहताज हो गए है. राशन कार्ड के अभाव में ऐसे लोगों को जनवितरण का भी लाभ नही मिल पा रहा है. लोग भुखमरी के चौखट पर खड़े है. वहीं शुक्रवार को उस वक्त सबकी आंखें खुली की खुली रह गई जब कनौदी पैक्स के जनवितरण दुकान पर एक युवक फ्री का राशन लेनें खुद की कार लेकर आया था. उसे देखकर हर कोई स्तब्ध था. मुफ्त का राशन लेकर बाहर निकले युवक ने निकट के एक दुकान में चावल बेच दिया और गेंहू अपने कार की डिक्की में डालकर चलते बना. यह दृश्य देखकर आसपास के लोगों में चर्चा बन गई कि जरूरतमंदों को खाने के लिए अनाज नही है और शायद जिन्हें जरूरत नही है उन्हें सरकार फ्री में अनाज दे रही है.

राशन कार्ड से वंचित गोपलामारण गांव के पिंटू पुझार अपने बीवी बच्चे के साथ
पत्रकारों से बातचीत में नाम ना छापने के शर्त पर युवक ने बताया कि चावल की गुणवत्ता अच्छी नही होती है, इसलिए उसे 14रु किलो बेच दिए, ऐसे भी हमलोगों के खेतों में भी चावल की उपज होती है जिससे साल भर का गुजारा हो जाता है. गेहूं का इस्तेमाल घर में होता है इसलिए इसे घर लेकर जाएंगे. उक्त जविप्र के सामने इस दृष्य को देखकर मीडियाकर्मियों द्वारा आसपास के इलाके में गरीब एवं असहाय परिवारों की वर्तमान स्थिति जानने की कोशिश की गई. जिसमें यह देखा गया कि इस क्षेत्र में दर्जनों ऐसे परिवार हैं जिन्हें दो वक्त की भोजन का जुगाड़ नही है.इसी क्रम में खुरंडा पंचायत के गोपलामारण गांव निवासी मजदूर पिन्टू पुझार से बातचीत की गई. इस दौरान उसने बताया कि एक छोटी सी झोपड़ी में अपनी पत्नी कालो देवी एवं चार बच्चे के साथ रहते है.मैं मजदूरी करता हूं और पत्नी जंगल से पत्ता तोड़कर बेचती है. फिर किसी तरह घर चल जाता है.यातायात के लिए घर मे सायकिल तक नही है, राशन कार्ड के लिए कई वार आवेदन दिए लेकिन कार्ड नही बना.इस लाकडाउन में मजदूरी का काम भी नही मिलता है और ना ही जंगल के पत्तों की बाजारों में मांग है. इस परिस्थिति में हमारे घर में दोनों वक्त का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है. राशन कार्ड के अभाव में राशन भी नही मिलता है.
झाझा से सोनू कुमार की रिपोर्ट