आज संपूर्ण भारत में lockdown की स्थिति है, ऐसे में दूरदर्शन द्वारा रामायण का प्रसारण किया गया था. और अभी दूरदर्शन के भारती चैनल पर महाभारत का प्रसारण हो रहा है. जिससे कि हम कुछ सीख ले सकते हैं .आज हम महाभारत देख रहे थे. उसमें कई ऐसे प्रसंग आते हैं, जो दिल को छू जाता है. जिसको हम भुलाए, भूल नहीं सकते.
यह सर्वविदित है,महाभारत की लड़ाई अहंकार की,पुत्र मोह की
परिवार में फैले असंतोष की, घमंड की,अपने वर्चस्व को बचाने के लिए, परिवार में फैले बंटवारे की भावना से प्रेरित है. इसके लिए एक ही परिवार के संतान एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं.
हम बात करेंगे मित्रता कि, एक मित्र ने यह जानते हुए भी कि मेरा मित्र दुर्योधन गलत है ,फिर भी अपने परिवार के खिलाफ मित्रता के लिए अस्त उठा लिया, आज महाभारत का एक प्रसंग है, कि श्री कृष्ण जब कौरवों से शांति प्रस्ताव की बात करके निकलते हैं,जो कौरव श्री कृष्ण की बात नहीं मानता है. उसके बाद उनको कर्ण मिलते हैं. दोनों एक दूसरे से बात करने के लिए कहीं एकांतवास में जाते हैं. जब श्री कृष्ण जी ने कर्ण को सच्चाई बताई कि वह भी कुंती के पुत्र हैं, इस नाते आप पांडवों के बड़े भाई हैं. युधिष्ठिर को जब यह पता चलेगा कि, आप उनके जेष्ठ भ्राता है. तो वो आपको हस्तिनापुर का सिंहासन आपको सौंप देंगे. तो कर्ण कहते हैं, कि प्रभु अगर युधिष्ठिर ने मुझे हस्तिनापुर का मुकुट सौंप दिया तो मैं मित्रता के नाते यह मुकुट मैं दुर्योधन को सौप दूंगा, क्योंकि दुर्योधन ने बुरे वक्त में मेरा साथ दिया है. महाबली कर्ण यह जानते थे कि इस युद्ध में कौरवों की हार होनी तय है.
यह बातें जानने के बाद कर्ण के दिमाग मे यह बात चलता है, कि जब हमें कोई नहीं जानता था. हमें सूत पुत्र के नाम से उपेक्षित किया जाता था. उस समय दुर्योधन ने ही उसका साहस बढ़ा करके अंग प्रदेश का राजा घोषित कर दिया था. ताकि वह क्षत्रियों के भांति लड़ सके. वहां से दोनों की मित्रता की शुरुआत हुई. मित्रता के लिए कर्ण ने आगे क्या किया वह आप भी जानते हैं,यह तो सर्वविदित है.
खैर अब मैं बात मित्रता की करता हूं. मित्रता एक ऐसा रिश्ता है. जो खुद से चुना जाता है.मित्र अगर अच्छा हो तो आप अच्छा कर सकते हैं, अगर बुरी मित्रता मिल गई, तो आप का सर्वनाश हो सकता है. इस बात को महाभारत में भी दिखाया गया है. इसीलिए मित्रता करने से पहले कई बार सोचना चाहिए.
अगर आपने मित्रता कर ली तो, मित्र जैसा भी हो, तो साथ निभाने का धर्म भी बनता है. चाहे उसके लिए कुछ भी निछावर क्यों ना करना पड़े.
यह बातें मैं इसलिए बताना चाह रहा हूं कि आज जमुई टुडे के लिए हमारे मित्रों ने भरपूर सहयोग दिया और आगे भी देने के लिए तैयार है. सब मिलकर समाज का और देश का भला चाहते हैं. मैंने मास्टर आफ जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन किया है. मैं अपने समाज और देश के लिए कुछ करना चाहता था. इसके लिए मेरे सारे दोस्तों ने मिलकर सहयोग दिया. और हां अपने दोस्तों को थैंक्यू बोलना भी अच्छा नहीं लगता है क्यों कि वह हमारे दोस्त हैं जो हमेशा अपने दोस्त का भला ही चाहते हैं.
*कुमार नेहरू की कलम से*