संपादकीय
आज यह सवाल पूरे बिहार में उठ रहा है, कि कोटा में फंसे हुए विद्यार्थियों को घर कैसे लाया जाए, क्या नीतीश जी नहीं चाहते कि कोटा में फंसे बच्चे वापस आए. ऐसे बहुत ही सवाल सभी लोगों के मन में उमड़ रहा है. कई गरीब मजदूर जो दिहाड़ी करने के लिए दूसरे राज्य में गए उनकी स्थिति तो और भी ज्यादा नाजुक है.उनको तो शायद इस समय का खाना भी नसीब हो रहा है या नहीं इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं.
लेकिन यह मुद्दा गरमाया है,की जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी अपने क्षेत्र के लोगों को ला सकते हैं ,तो नीतीश जी क्यों नहीं प्रयास कर रहे हैं.तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट करके और अपने फेसबुक पेज पर नीतीश सरकार को घेरा है. लेकिन यह बात भारत ही नहीं बिहार के सभी जनता को समझना चाहिए की कोरोना वायरस एक ऐसा महामारी है, जिसने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को चौपट कर रखा है.इसका एक ही मात्र बचाव है,सोशल डिस्टेंसिंग. बिना इसके हम कोरोना से जंग नहीं जीत सकते. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जो किया वह कहां तक जायज है, यह सोचने वाला विषय है.
खैर हम अपनी बात आपके पास रखते हैं,अगर ऐसे ही सारे राज्य के मुख्यमंत्री करने लगे तो सोशल डिस्टेंसिंग का क्या मतलब रह जाएगा हालांकि नवादा के विधायक को मिला पास या फिर मुजफ्फरपुर के डीएम द्वारा दिया गया पास कहीं ना कहीं लॉक डाउन का उल्लंघन है. जब राज्य के संपन्न लोगों को तकलीफ है, कि उनका बच्चा फंसा है, तो उनको थोड़ा गरीबों आम मजदूर के लिए भी सोचना चाहिए. जो अपने राज्य से अपने परिवार से दूर रहकर मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करने की कोशिश कर रहा है. ऐसे समय में गरीब मजदूरों के परिवार, जो बिहार में रह रहे हैं. उनके ऊपर क्या गुजरती होगी.
ऐसे समय में मेरा मानना है, नीतीश जी का फैसला सही है. अगर सभी लोग एक दूसरे स्टेट में आना जाना शुरू कर देंगे, तो क्या मतलब रह जाएगा. हम कैसे कोरोना के चेन को तोड़ पाएंगे. शायद सरकार के इसी फैसले की वजह से,आज बिहार कोरोना संक्रमित राज्यों में 16वें स्थान पर है.
कुमार नेहरू,
संपादक, जमुई टुडे