जमुई के महाराजगंज चौक स्थित काली मंदिर के समीप समाजसेवी सूर्या वत्स ने छठ पर्व पर बांस से बने सामानों के ऊपयोग के लिए लोगों को जागरुक किया. सूर्या वत्स ने बताया कि बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैं. धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है. सूर्या वत्स लोगों अनुरोध करते हुए कहा की बांस की बनी चिजो के छठ पूजा में उपयोग से पूजा की सात्विकता बनी रहती है, साथ ही भगवान भी खुश होते हैं. छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है. छठ पूजा सात्विकता, प्रकृति पूजन, साफ-सफाई को ध्यान में रखकर मनाया जाता है. छठ पूजा में पृथ्वी पर जीवनदायी प्राकृतिक संसाधन को भगवान द्वारा हमें प्रदान करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाता है। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है.
त्यौहार के अनुष्ठान कठोर है, चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है. छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं.
पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है, इस जागरूकता कार्य में समाजसेवी सूर्या वत्स के साथ में घनश्याम गुप्ता के साथ स्थानीय लोग शामील होकर लोगों को बांस से बनी चीजों का पूजा में प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया.
जमुई संवाद सूत्र