जमुई जिले के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र चोरमार गांव से सटे एक ऐसा गांव है, जहां आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी लोग सरकारी सुविधाओं से मरहूम हैं। यहां के लोग आज भी बिना आधुनिक संसाधन के जीने को मजबूर हैं। इस गांव के लोगों को आज तक कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई है। यह मामला नक्सल प्रभावित गांव चोरमारा से सटे भरारी गांव का है। इस गांव में तकरीबन 10 से 12 घर हैं। जिसमें 50 से 60 लोग रहते हैं। सभी समाज के बेहद गरीब तबके के लोग इस गांव में रहते हैं।
आज भी इनको पीने के लिए पानी लाने अपने घर से 1 किलोमीटर दूर पहाड़ी नदी या झरने पर जाना पड़ता है। छोटे-छोटे मासूम बच्चों के हाथों में किताब की जगह बर्तन होते हैं ताकि पानी लाकर अपने परिवार की प्यास बुझा सके। इनके पास ना रहने को घर है ना खाने को अनाज। अगर किसी वजह से इनको खाना नहीं मिल पाता है तो उस दिन इनके बच्चे बगल स्थित सीआरपीएफ कैंप से खाना लाकर अपनी भूख मिलाते हैं। इनके गांव के कुछ परिवार को राशन कार्ड तो मिला है लेकिन समय से राशन इनको नहीं मिल पाता है। राशन लाने के लिए इनको पैदल 6 किलोमीटर से ज्यादा चलकर बरहट जाना पड़ता है। लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी पीओएस मशीन में नेटवर्क नहीं रहने से वापस अपने घर लौट आना पड़ता है।
इसके साथ ही जन वितरण प्रणाली विक्रेता द्वारा भी इनको तय मात्रा से कम अनाज दिया जाता है। जिससे उनके परिवार को भुखमरी का सामना करना पड़ता है। इस गांव में ना ही किसी परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है, और ना ही किसी वृद्ध को वृद्धा पेंशन मिल रहा है। इस गांव में रहने वाले सभी लोगों के पास जन वितरण प्रणाली के तहत राशन कार्ड भी उपलब्ध नहीं है। जिससे यह लोग आज आजादी के 75 साल बाद आज भी यहां के लोग सरकारी सुविधाओं के मिलने का इंतजार में जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।
कुमार नेहरू की रिपोर्ट