जमुई के प्रसिद्ध शिशु रोग विशेषज्ञ सह समाजसेवी डॉ एस एन झा के द्वारा एक शॉर्ट फिल्म का निर्माण कराया गया है। जिसका शीर्षक है ‘भागीरथी द सेंड मैन’ जिसको यूट्यूब पर 25 दिसंबर को रिलीज किया गया है। जैसा की शीर्षक के नाम से प्रतीत होता है कि भागीरथी जिनके प्रयास से धरती पर गंगा नदी का उद्गम हुआ और फिल्म का सह शीर्षक ‘द सैंड मैन’ जो बालू उत्खनन से जुड़ा है। इन्हीं दो विषय वस्तु से प्रेरणा लेकर जिले में बालू उत्खनन की वजह से भविष्य की समस्याओं से प्रेरित होकर फिल्म ‘भागीरथी द सेंड मैन ‘ बनाई गई है। भागीरथी के प्रयास से धरती पर गंगा मां का उद्गम हुआ, गंगा माता के उद्गम से भारतवर्ष के उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश बिहार समेत पूर्वोत्तर राज्यों में सुख समृद्धि आई। जिससे मानव जाति का काफी विकास हुआ, इस थीम को लेकर उनके द्वारा बनाई गई शॉर्ट फिल्म , जो जिले में बालू के उत्खनन को लेकर आने वाले भविष्य में जिले में पेयजल की समस्याओं को चरितार्थ करती है।
लघु फिल्म का एक दृश्य
उनके दिशा निर्देश पर बनाए गए , ये फिल्म समाज को बेहतर संदेश देती है, लेकिन यह शॉर्ट फिल्म अपने कहानी और वर्तमान परिदृश्य से भटकती दिखती है। फिल्म का शुरुआत तो बेहतर है, लेकिन 23 सेकंड 50 मिनट की फिल्म में नदियों से बालू के उत्खनन से होने वाले भविष्य के परिणाम को चरितार्थ करने में फेल हो जाती है। फिल्म के एक दृश्य में डॉक्टर एसएन झा द्वारा बच्चों को नदी का भ्रमण करते हुए नदियों के किनारे मानव सभ्यता के विकास का इतिहास की जानकारी देते हुए नदियों का महत्व बताने का दृश्य अच्छा बन पड़ा है, लेकिन बालू ठेकेदार के सामने डॉ एस एन झा के किरदार का चुपचाप रह जाना, फिल्म के प्रभाव को कम करती है।
लघु फिल्म को यूट्यूब पर देख सकते हैं।
फिल्म के एक सीन में दिखाया गया है की एक अबोध शिशु पानी की वजह से रो रहा है और उसकी मां शिशु को दूध पिलाने की कोशिश करती है, अंततः पानी की कमी की वजह से शिशु की मां अपने अबोध बालक को अपना खून पिलाने के लिए विवश हो जाती है। लघु फिल्म का यह सीन कहीं ना कहीं विचलित करने वाला है, इस सीन की इस फिल्म में जरूरत नहीं थी और भी कई तरीके थे, जिससे पानी की समस्याओं को दर्शाया जा सकता था। वही इस फिल्म में बालू ठेकेदार द्वारा अपने ठेकेदारी को लेकर जो संवाद स्थापित किया गया उसे पर और बेहतर कार्य करने की जरूरत थी। जिससे बालू ठेकेदारों और उसके कर्मचारियों का खौफ बेहतर रूप से पर्दे पर उतर सके। यह जग जाहिर है कि बालू उत्खनन का लाइसेंस मिलने के बाद जिले में बालू ठेकेदारों की मनमानी किसी से छुपी नहीं है। इस बात को फिल्म में उजगार करने की जरूरत थी। इसके साथ ही जिले के कई प्रखंडों में बालू उत्खनन की वजह से भू जल का स्तर काफी नीचे चला गया। बालू ठेकेदारों द्वारा तय मात्रा से ज्यादा बालू का उठाव करने की वजह से नदियों का स्वरूप काफी खराब हो चुका है। अगर फिल्म में इन चीजों को प्रदर्शित किया जाता तो यह काफी प्रभावशाली होता।
लघु फिल्म का एक दृश्य
फिल्म के अंत में पत्नेश्वर पहाड़ स्थित नदी से बालू को ग्रामीणों द्वारा हाथों से खोद कर पानी निकालने का सीन आने वाले भविष्य में पानी की कमी की एहसास कराता है। लेकिन अगर उससे पहले ग्राफिक द्वारा यह समझाया जाता की आने वाले भविष्य में जमुई वासियों को पीने के पानी के लिए ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा, तो यह सीन ज्यादा प्रभावशाली साबित होता है। कुल मिलाकर फिल्म का सार यह है कि आने वाले भविष्य में बालू की उत्खनन की वजह से जिले में पीने की पानी की समस्या उत्पन्न होने को दर्शाती है, लेकिन यह लघु फिल्म कई जगहों पर अपने कथा और उद्देश्यों पर भटकती दिखती है। फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ-साथ कहीं-कहीं रियल साउंड का प्रयोग किया जाता तो फिल्म का प्रभाव बढ़ जाता।
फिल्म समीक्षा: कुमार नेहरू