Jamui -गर्मी की शुरुआत के साथ ही बरहट प्रखंड के ग्रामीण इलाकों में पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। खासकर घने जंगलों के बीच बसे नक्सल प्रभावित गुरमहा गांव में लोग शुद्ध पेयजल के लिए तरस रहे हैं। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही साफ झलक रही है।जिससे यहां के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह गए हैं। गुरमहा गांव में कुल चार टोले हैं ,जहां 700 से अधिक मतदाता और कुल मिलाकर लगभग 1000 से अधिक की आबादी निवास करती है। इसके बावजूद यहां बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है।
सरकार ने शिक्षा के लिए तो रोशनी जलाई। लेकिन गांव अब भी अंधेरे में डूबा हुआ है। बिजली न होने से बोरिंग बेकार वार्ड नं 1 के ग्रामीण प्रमिला देवी, सुनीता देवी, बबिता देवी, मीरा देवी के अनुसार गांव में मुखिया के द्वारा एकमात्र बोरिंग की व्यवस्था की गई थी, लेकिन बिजली उपलब्ध न होने के कारण बोरिंग में लगा मोटर बेकार पड़ा है। इस वजह से लोग गड्ढों और नदी के पानी पर निर्भर हैं। ग्रामीणों को हर सुबह और शाम नदी किनारे गड्ढा खोदकर पानी निकालना पड़ता है जो अक्सर दूषित होता है।

गांव के लोग दूषित पानी पीने से बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। लेकिन गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं न होने से उनका सही इलाज नहीं हो पा रहा है। यहां ग्रामीण चिकित्सक प्रत्येक दिन जाते हैं और औने -पौने दाम में ग्रामीणों को दवा देकर चले आते हैं। ग्रामीणों को सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से पानी की समस्या बनी हुई है। हर साल गर्मी के मौसम में हालात और भी गंभीर हो जाते हैं। गांव के लोग खेती और मजदूरी पर निर्भर हैं लेकिन पानी की किल्लत से उनकी आजीविका भी प्रभावित हो रही है।
प्रशासन ने वन विभाग को ठहराया जिम्मेदार
इस मामले पर जब प्रखंड विकास पदाधिकारी एसके पांडेय से बातचीत की गई। तो उन्होंने बताया कि गांव में बिजली की सुविधा नहीं होने के कारण बोरिंग में लगा मोटर नहीं चल पा रहा है। बिजली पहुंचाने के लिए कई बार प्रयास किया गया। लेकिन वन विभाग की अनुमति नहीं मिलने से यह समस्या बनी हुई है।
बरहट से शशिलाल की रिपोर्ट